Sunday, June 9, 2013


मुझे खोने से डरता था

मेरी आखों पे मरता था 
मेरी बातों पे हँसता था 
नाजाने शख्स था वो कैसा 
मुझे खोने से डरता था

मुझे जब भी वो मिलता था
यही हर बार कहता था
अगर मैं भूल जाऊं तो,
अगर मैं रूठ जाऊं तो

कभी वापिस न आऊं तो
भुला पाओगे ये सब कुछ
यूँही हँसती रहोगी क्या
यूँही सजती रहोगी क्या

यही बातें हैं बस उसकी
यही यादें हैं बस उसकी
मुझे इतना पता है बस ……!
मुझे वो प्यार करता था ,

मुझे खोने से डरता था!!!
~बशीर बद्र~.

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